माँ पाठ का जीवन-परिचय:-
लेखक – ईश्वर पेटलीकर वास्तविक नाम ईश्वर मोतीभाई पटेल जन्म:- पेटलाड के समीप पेटली ग्राम में (गुजरात) 9 मई 1916 ई.
मृत्यु – 22 नवम्बर 1983 ई.
हिन्दी अनुवाद – गोपाल दास नागर यह गुजराती भाषा के अति लोकप्रिय कथाकार हैं। श्री पेटलीकर साहित्य के अतिरिक्त सामाजिक और राजनीतिक जीवन में भी सक्रिय रहे हैं।
माँ पाठ का सारांश लिखें:-
माँ का प्रेम उस बच्चे के प्रति अधिक होता है, जो सबसे छोटा होता है। माँ की चार संतान हैं जिनमें दो बड़े पुत्र शहर में नौकरी करते हैं तथा एक बेटी की शादी हो चुकी है और वह अपने ससुराल में है। छोटी बेटी मंगु पागल है। लोग उसे पागलों के अस्पताल में भर्ती करने की सलाह देते हैं इसलिए अस्पताल में भर्ती नहीं कराती है। उनकी सेवा देख लोग दंग रह जाते हैं। जितना ध्यान माँ मंगु का रखती है उतना न तो कमाऊ पुत्रों का और न ही शादी-शुदा पुत्री का रखा । लेकिन गाँव की ही लड़की कुसुम जब अस्पताल से ठीक होकर वापस घर लौटती है तब माँ भी अपनी पागल पुत्री को अस्पताल भर्ती कराने को राजी हो जाती है। लेकिन पुत्री से अलग होते ही उसकी दशा वैसे ही हो जाती है, जैसे पुत्री की थी। कहानीकार ने इस कहानी के माध्यम से यह सिद्ध करना चाहा है कि सच्चा प्रेम माँ की ममता है, जिसके प्रति अधिक ममता होती है, उससे अलग होने पर उसका दिल टूट जाता है। मंगु को पागलों के अस्पताल में भर्ती कराने की सलाह लोग जब उसकी माँ को देते तो वह एक ही जवाब देती माँ होकर सेवा नहीं कर सकती तो अस्पताल वाले क्या करेंगे ? जन्मजात पागल और गूंगी मंगु को जिस तरह पालती पोसती सेवा करती उसे देखकर सभी माँ की प्रशंसा करते । मंगु के अलावा माँ को तीन संतानें थी। दो पुत्र और एक पुत्री थे। जब सभी गाँव आते तो माँ उनको भी प्यार करती किन्तु बहुओं को संतोष नहीं बेटी ससुराल चली गई थी और पुत्र पढ़-लिखकर शहरी हो गये थे। उनके बाल-बच्चे होता। वे जलने लगती। कहती मंगु को झूठा प्यार दुलार करके माँ ने ही अधिक पागल बना दिया है। आदत डाली होती तो पाखाना-पेशाब का तो ख्याल रखती। डाँट से तो पशु भी सीख लेते हैं। बेटी भी ऐसे ही बाते सुनाती। पुत्र माँ के भाव को समझते थे इसलिए कुछ नहीं कहते थे। इसी बीच कुसुम अस्पताल गई और दूसरे महीने ही ठीक हो गई। फिर भी डॉक्टरों के कहने पर एक महिना और रही। गाँव आई तो सभी देखने दौड़े। अब लोग कहने लगे’ माँ जी, एक बार अस्पताल में मंगु को भर्ती करा के देखो जरूर अच्छी हो जाएगी इस बार माँ ने विरोध नहीं किया। बड़े बेटे को चिट्ठी भिजवाई । लेकिन रात की नींद उड़ गई, मन का चैन छिन गया आखिर जाने का दिन आ गया । उस रात माँ को नींद नही आई। जब मंग को लेकर घर से बाहर निकलने लगी तो जैसे ब्रह्माण्ड का बोझ उस पर आ गया। माँ भारी कदमों से अस्पताल में दाखिल हुई। मुलाकात का समय था। एक पागल अपने पति से लिपट गई । बोली- ई भूतनियाँ मुझे अच्छे कपड़े नहीं देतीं उसकी परिचारिका ने हँसकर कहा- ‘ खा लो, मैं सब दूंगी’ माँ को विश्वास हो गया कि ये सब लोग दयालु डॉक्टर और मेट्रन हैं। मंगु का कागज देखा। बेटे ने कहा- मेरी मंगु का ठीक से ख्याल रखिएगा। मेट्रन ने कहा- आपको चिंता करने की जरूरत नहीं । बीच में ही माँ ने कहा- बहन ! यह एकदम पागल है, कोई न खिलाए तो खाती नहीं टट्टी की भी सुध नहीं रोशनी में उसे नींद नहीं आती। कहते कहते माँ रो पड़ी। जो सोते नहीं उन्हें दवा देकर सुलाया जाता है। जो खुद नहीं खाते उन्हें मुँह में खिलाया जाता है। माँ की बेकली के आगे मेट्रन की शक्ति लुप्त हो गई। मंगु को छोड़ माँ-बेटे जब बाहर आए तो दोनों के चेहरे पर शोक के बादल थे। रास्ते भर माँ रोती रही। रात भर माँ यही सोचती रही कि मंगु क्या कर रही होगी ?
प्रश्न 1:- मंगु के प्रति माँ और परिवार के अन्य सदस्यों के व्यवहार में जो फर्क है उसे अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर:- मंगु जन्म से पागल और गूंगी बालिका थी। माँ के लिए कोई कैसी-भी संतान हो उसकी वात्सल्यता फूट ही पड़ती है। मंगु की देख-रेख करने वाली माँ को अपनी पुत्री एवं ईश्वर से कोई शिकायत नहीं है। ममता की प्रतिमूर्ति माँ स्वयं अपने सुख को भूलकर-पुत्री के लिए समर्पित हो जाती है। उसकी नींद उड़ गई है। रात-दिन अपनी असहाय बच्ची के लिए सोचती रहती है। मंगु के अलावा भी संतानें थीं। वे भी अपनी माँ के व्यवहार से अनमने-सा दुःखी रहते हैं। माँ को ऐसी बात नहीं कि मंगू के अतिरिक्त अन्य संतानों से लगाव नहीं है परन्तु परिस्थिति ऐसी है कि मंगू के बिना उसका जीवन अधूरा है। दो बेटे के साथ-साथ घर में उनकी बहुएँ और पोते-पोतियाँ भी है। एक अन्य पुत्री जो ससुराल चली गई है। छुट्टियों में जब भी पोते पोतियाँ आते हैं तो आशा लगाते हैं कि उन्हें दादी माँ का भरपूर प्यार मिलेगा किन्तु माँ का समग्र मातृत्व मंगु पर निछावर हो गया है। मातृत्व के स्नेह में खिंची बहुएँ माँ जी के प्रति अन्याय कर बैठती हैं। माँ के अतिरिक्त परिवार के अन्य सदस्य मंगु को पागलखाने में भर्ती कराकर निश्चित हो जाना चाहते हैं किन्तु माँ बराबर इनका विरोध करती रहती है माँ जी अस्पताल को गौशाला समझती थीं।