10th Varnika Hindi Subjective Question part-1 | दही वाली मंगम्मा पाठ का सारांश लिखें | vvi hindi subjective question

दही वाली मंगम्मा पाठ का जीवन-परिचय:-

श्रीनिवास जी का पूरा नाम मास्ती वेंकटेश अय्यंगार है । उनका जन्म 6 जून 1891 ई. में कोलार, कर्नाटक में हुआ था। श्रीनिवास जी का देहावसान हो चुका है । वे कन्नड़ साहित्य के सर्वाधिक प्रतिष्ठित रचनाकारों में एक हैं। उन्होंने कविता, नाटक, आलोचना, जीवन चरित्र आदि साहित्य की प्रायः सभी विधाओं में उल्लेखनीय योगदान दिया। साहित्य अकादमी ने उनके कहानी संकलन ‘ सण्णा कथेगुलु ‘ को सन् 1968 में पुरस्कृत किया। उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार भी प्राप्त हुआ । यह कहानी कन्नड़ कहानियाँ (नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया) से साभार ली गयी है । इस कहानी का अनुवाद बी. आर. नारायण ने किया है ।

दही वाली मंगम्मा पाठ का सारांश लिखें:-

मंगम्मा अवलूर के समीप वेंकटपुर की रहनेवाली थी और रोज दही बेचने बेंगलूर आती थी । वह आते-जाते मेरे पास बैठती और अपनी बातें करती थी। एक दिन वह मेरे बच्चे को देखकर अपने पुत्र और पति की कहानी कहकर पति को अपनी ओर आकृष्ट करने की रहस्यमयी बातें कहने लगी। आदमी को अपने वश में रखने के तीन-चार अपने अनुभवपूर्ण गुण भी बताये। पन्द्रह दिन बाद मंगम्मा आई और रोती हुई अपना गृह-कलह तथा बेटा-बहु से अलग होने की दुःखद कहानी सुनाई । इस प्रकार बेटे-बहु से विरक्त होकर अपने जोड़े हुए पैसे को अपने साज श्रृंगार पर खर्च करने लगी । इस से वह कुछ लोगों के लिए आलोचना का पात्र भी बन गई। बहु भी उसकी जैकेट पर ताना कसने लगी और बात बढ़ने पर दिए गये गहने भी लौटाने को तैयार हो गई । झगड़े का कारण तो पोते की पीटाई थी लेकिन मूल-रूप में सास-बहू की अधिकार सम्बन्धी ईष्य्या थी ।औरत को अकेली जानकर कुछ लोग उसके धन और प्रतिष्ठा पर भी आँखे उठाते थे । रंगप्पा ने भी ऐसा ही किया, जिसे बहू के पैनी निगाहों के ताड़ लिया । उसने पोते को उसके पास भेजने का एक नाटक किया। अब मंगम्मा भी पोते के लिए बाजार से मिठाई खरीदकर ले जाने लगी। एक दिन कौवे उसके माथे से मिठाई का दाना ले उड़ा । अंधविश्वास के कारण मंगम्मा भयभीत हो उठी । जिसे माँ जी ने बड़े कुशलता से निवारण किया ।बहू के द्वारा नाटकीय ढंग से पोते को दादी के पास भेजने का बहू का मंत्र बड़ा कारगर हुआ । दूरी बढ़ने से भी प्रेम बढ़ता है । मानसिक तनाव घटता है । हुआ भी ऐसा ही । मंगम्मा को भी बहू में सौहार्द, बेटे और पोते में स्नेह नजर आने लगी। बड़े-बूढों ने भी समझाया । बहू ने मंगम्मा का काम अपने जिम्मे ले लिया ।एक दिन दही बेचने के क्रम में नंजम्मा (बहू) आई और मुझे सारी बातें बताई । परिवार का जमा पैसा लूट जाने के भय के कारण बहू बड़ी कुशलता से पुनः परिवार में शांति स्थापित कर लाई । और फिर पहले की तरह रहने लगी। अंत में लेखक इस निष्कर्ष पर पहुँचता है कि सास और बहू में स्वतंत्रता की होड़ लगी है । उसमें माँ-बेटे और पति-पत्नि है। माँ-बेटे पर से अपना अधिकार नही छोड़ना चाहती है तो बहू पति पर अपना अधिकार जमाना चाहती है । यह सारे संसार का ही किस्सा है ।

1. रंगप्पा कौन था और वह मंगम्मा से क्या चाहता था ?

उत्तर – रंगजा रंगप्पा के गाँव का आदमी था । बड़ी शौकीन तबीयत का । कभीकभार जूआ भी खेलता था। जब उसे पता चला कि मंगम्मा बेटे से अलग रहने लगी है तो वह मंगम्मा के पीछे पड़ गया। एक दिन उससे हाल-चाल पूछा और बोला कि मुझे रुपयों की जरूरत है । दे दो लौटा दूँगा । मंगम्मा ने जब कहा कि पैसे कहाँ हैं तो बोला कि पैसे यहाँ-वहाँ गाड़कर रखने से क्या फायदा दूसरे दिन रंगप्पा ने अमराई के पीछे रोककर बाँह पकड़ ली और कहा- ‘ जरा बैठो मंगम्मा, जल्दी क्या है ?

2.मंगम्मा का चरित्र-चित्रण कीजिए ।

उत्तर – मंगम्मा प्रस्तुत कहानी का प्रमुख केन्द्रीय चरित्र है । कहानी की कथावस्तु इसके इर्द-गिर्द ही घूमती रहती है । पति से विस्त रहनेवाली मंगम्मा शायद कभी ऐसी नहीं सोची होगी कि उसका बेटा पत्नी के दबाव में आकर उसको छोड़ सकता है । पत्नी का शृंगार पति है । मंगम्मा और उसकी बहू इस तथ्य को भली-भांति समझती । मंगम्मा दही बेचकर अपना जीवनयापन करती है । दही लेकर वह अपने गाँव से शहर जाती है । और उसे बेचकर जो आमदनी होती है । उसी में वह कुछ संचय करती है । वह जानती है कि पैसा ही उसकी अपनी जमा पूँजी हैं वह भोली-भाली और सह्दयता वाली नमी है । अपने पोते के प्रति उसका अधिक झुकाव हो वस्तुतः मानव मूलधन से कहीं अधिक ब्याज पर जोर देता है। वह अपना सतीत्व बचाये रखना चाहती है | रंगप्पा द्वारा बार-बार उसका पीछे करने पर भी अपने कर्मपथ से विचलित नहीं होती है । किन्तु पति के प्रति श्लेष मन्त्र भी क्षोभ नहीं है । मंगम्मा सम्पूर्ण भारतीय नारीत्व का प्रतिनिधित्व करती है ।

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