ढहते विश्वास जीवन-परिचय:-
सातकोड़ी होता उड़िया के एक प्रमुख कथाकार हैं। इनका जन्म 29 अक्टूबर 1929 ई. में मयूरभंज, उड़ीसा में हुआ था। अबतक इनकी एक दर्जन से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। होता जी भुवनेश्वर में भारतीय रेल यातायात सेवा के अंतर्गत रेल समन्वय आयुक्त व उड़ीसा सरकार के वाणिज्य एवं यातायात विभाग में विशेष सचिव तथा उड़ीसा राज्य परिवहन निगम के अध्यक्ष रह चुके हैं। इनके कथा साहित्य में उड़ीसा का जीवन गहरी आंतरिकता के साथ प्रकट हुआ है। यह कहानी राजेन्द्र प्रसाद मिश्र द्वारा संपादित एवं अनूदित उड़िया की चर्चित कहानियाँ (विभूति प्रकाशन, दिल्ली) से यहाँ साभार संकलित है
ढहते विश्वास पाठ का सारांश:-
प्रस्तुत कहानी’ ढहते विश्वास’ चिंतन प्रधान कहानी है। इसमें कहानीकार सातकोड़ी होता ने उड़ीसा के जन-जीवन का चित्र प्रस्तुत किया है। कहानी एक ऐसे परिवार की आर्थिक दुर्दशा से शुरू होती है, जिसका मुखिया लक्ष्मण कलकत्ता में नौकरी करता है, किन्तु उसकी कमाई से परिवार का भरण-पोषण नहीं हो पाता । इसलिए उसकी पत्नी तहसीलदार साहब के घर छुट-पुट काम करके उस कमी को पूरा करती है। उसके पास एक बीघा खेत भी है, लेकिन बाढ़, सूखा तथा तुफान के कारण वह खेत दुख का कारण बन जाता है। कई दिनों से लगातार वर्षा होते देखकर लक्ष्मी इस आशंका से भयाक्रांत हो गई कि इस बार भी बाढ़ आएगी। तूफान से घर टूट गया था। कर्ज लेकर किसी प्रकार घर की मरम्मत कराती है। तूफान और सूखा से त्रस्त होते हुए भी हल किराए पर लेकर खेती करवाती है सूखा होने के कारण धान के अंकुर जल गये, फिर भी हार न मानकर बारिश होने पर रोपनी करने का इंतजार किसान कर रहे थे। लेकिन लगातार वर्षा होने के कारण बाढ़ आने की चिंता ने लोगों की नींद हराम कर दी थी। लक्ष्मी का घर देवी नदी के बाँध के नीचे था । लक्ष्मी उसी समय ससुराल आई थी, जब दलेर्ड बांध टूटाes था । बाढ़ की भयंकरता के कारण लोगों की खुशी तुराई के फूल की तरह मुरझा गई । चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ था। उस दर्दनाक स्थिति की अनुभूति लक्ष्मी को हो चुकी थी । इसलिए वह यह सोचकर सिहर उठता है कि यदि पुनः दलेई बाँध टूट जाए तो इस विपत्ति का सामना वह कैसे कर पाएगी, क्योंकि तूफान और सूखा ने कमर तोड़ दी है। पति परदेश में है। तीन बच्चे हैं। लक्ष्मी वर्षा की निरंतरता से भीषण बाढ़ आने की बात सोचकर दुखी हो रही थी उसके पति लक्ष्मण कलकत्ता की नौकरी से कुछ पैसे भेज देता था और वह स्वयं तहसीलदार का छुट-पुट काम करके बच्चों के साथ अपना भरण-पोषण कर रही थी । भूमि का छोटा टुकड़ा तो प्रकृति प्रकोप से ही तबाह रहता है। दलेई बाँध टूटने की विभीषिका तो वह पहले ही देख चुकी थी। वह भयानक अनुभूति रह-रहकर जाग उठती थी । बाँध की सुरक्षा के लिए ग्रामीण युवक स्वयंसेवी दल बनाकर बाँध की सुरक्षा में संलग्न थे। लक्ष्मी भी बड़े लड़के को बाँध पर भेजकर दो लड़कीयों और एक साल के लड़के के साथ घर पर है। पूर्व में ऐसी भयानक स्थिति को देखकर भी लोग यहाँ से खिसके नहीं। शायद इसी प्रकार नदियों के किनारे नगर और जनपद बनते गये । लक्ष्मी ने भी पूर्व के आधार पर कुछ चिउड़ा बर्तन कपड़ा संग्रह कर लिया । गाय, बकरियों के पगहा खोल दिया। पानी ताइ की ओर बढ़ा और शोर मच गया । ग्रामीण युवक काम में जुटे थे और लोगों में जोश भर रहे थे तथा लोगों को ऊँचे पर जाने का निर्देश भी दे रहे थे। सब लोगों का विश्वास आशंका में बदल गया। लोग काँपते पैरों से टीले की ओर भागे । स्कूल में भर गये। देवीs स्थान भी भर गया । लोग हतास थे अब तो केवल माँ चंडेश्वरी का ही भरोसा है । लक्ष्मी भी आशा छोड़कर जैसे-तैसे बच्चों को लेकर भाग रही थी क्योंकि बाँध टूट गया था और बाढ़ वृक्ष, घर सभी को जल्दी-जल्दी लील रही थी। शिव मंदिर के समीप पानी का बहाव इतना बढ़ गया कि लक्ष्मी बरगद की जटा में लटककर पेड़ पर चढ़ गयी। वह कब बेहोश हो गई। कोई किसी की पुकार सुननेवाला नहीं। टीले पर लोग अपने को खोज रहे थे। स्कूल भी डूब चुका था अतः लोग कमर भर पानी में किसी तरह खड़े थे। लक्ष्मी को होश आने पर उसका छोटा लड़का लापता था।
प्रश्न 1:- लक्ष्मी कौन थी ? उसकी पारिवारिक परिस्थिति का चित्र प्रस्तुत कीजिए ।
उत्तर – लक्ष्मी ढहते विश्वास कहानी की प्रमुख पात्र है। उसका पति (लक्ष्मण) कलकत्ता में नौकरी करता है। पति द्वारा प्राप्त राशि से उसका घर-गृहस्थी नहीं चलता है तो वह तहसीलदार साहब के घर का कामकर किसी तरह जीवन-यापन कर लेती है। पूर्वजों के द्वारा छोड़ा गया एक बीघा खेत है। किसी तरह लक्ष्मी ने उसमें खेती करवायी है। वर्षा नहीं होने से अंकुर जल गये तो कहीं-कहीं धान सूख गयी । एकतरफ सूखा तो दूसरी तरफ लगातार वर्षा से लक्ष्मी का हृदय काँप उठता है तो उसे बाढ़ का भयावह दृश्य नजर आने लगता है।
प्रश्न 2:- कहानी के आधार पर प्रमाणित करें कि उड़ीसा का जन-जीवन बाद और सूखा से काफी प्रभावित रहा है ?
उत्तर – उड़ीसा का भौगोलिक परिदृश्य ऐसा है कि वहाँ प्रायः बाद और सूखा का प्रकोप होता रहता है। प्रकृति की विकरालता शायद उड़ीसा के लिए ए ही होता है। प्रस्तुत कहानी सूखा और बाद दोनों का सजीवात्मक चित्रण किया गया है। देवी नयी के तट पर बसा हुआ एक गाँव जहाँ कुछ दिन पहले अनावृष्टि के कारण खेतों में लगी हुई फसलें जल-भुन गई । हताश और विवश ग्रामीण आने वाले भविष्य को लेकर चिन्तित थे कि अचानक अतिवृष्टि होने लगी। लोगों की आंशकाएँ बढ़ गई कि कहीं बाढ़ न आ जाये। नदी का उत्थान बढ़ता जा रहा था। ग्रामीण बाँध टूटे नहीं इसके लिए रात-दिन उसका मरम्मत करने में लग जाते हैं। उन ग्रामीणों के लिए यह पहली बाढ़ नहीं है