नगर पाठ का जीवन-परिचय:-
सुजाता का वास्तविक नाम एस. रंगराजन है। इनका जन्म 3 मई 1935 ई. में चेन्नई, तमिलनाडु में हुआ। अपनी रचना-शैली तथा विषय-वस्तु के द्वारा इन्होंने तमिल कहानी में उल्लेखनीय बदलाव किए। इनकी रचनाएँ खूब लोकप्रिय हुई । इन्होंने कुछ अभिनेय नाटक भी लिखे । इनके कुछ उपन्यासों पर चलचित्र भी बने। इनकी पच्चीस से अधिक कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें ‘ करयेल्लान शेण्बकप्पू’, ‘ कनबुत् तोलिस्थालै ‘ आदि उपन्यास काफी चर्चित और सम्मानित हुए। यह कहानी आधुनिक तमिल कहानियाँ (नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया) से यहाँ साभार संकलित है। इस कहानी के अनुवादक के. ए. जमुना हैं।
नगर पाठ का सारांश लिखें:-
प्रस्तुत कहानी’ नगर’ व्यंग्य प्रधान कहानी एक ऐसी लड़की से संबंधित है, जो आज ही मदुरै आई है। उसकी माँ वल्लि अम्माल अपनी पुत्री पाप्पाति के साथ मदुरै स्थित बड़े अस्पताल के बहिरंग रोगी विभाग के बाहर बरामदे पर बैठी प्रतिक्षा कर रही थी। उसकी पुत्री को बुखार था। गाँव के प्राथमिक चिकित्सा केन्द्र के डॉक्टर ने उसकी जाँच कर उसे एडमिट करवा देने को कहा। वल्लि अम्माल अनपढ़ थी। वह इतना भी नहीं जानती थी कि पेसेंट किसे कहते हैं | दुसरे दिन जब बड़े डॉक्टर पाप्पाति को अनुपस्थित देखकर जानकारी लेते हैं तो पता चलता है कि वह वहाँ से विदा हो चुकी है। इससे स्पष्ट होता है कि नगर की व्यवस्था अति अस्त-व्यस्त हो गई है, जहाँ पैसे पर खेल होता है गरीब एवं ग्रामीण के लिए कोई जगह नहीं है। उसे लेकर गाँव के प्राइमरी हेल्थ सेंटर गई तो डॉक्टर ने कहा ‘ एक्यूट केस ऑफ मेनिनजाइटिस’ फिर बारी-बारी से दुसरे डॉक्टरों ने देखा । बड़े डॉक्टर ने एडमिट करने को कहा। वल्लि अम्माल ने बड़े डॉक्टर की ओर देखकर पूछा बाबुजी बच्ची अच्छी हो जाएगी न ? डॉक्टर ने कहा- पहले एडमिट करवा लें। इस केस को मैं स्वयं देखूँगा। डॉ. धनशेखरण श्रीनिवासन को सारी बात समझाकर बड़े डॉक्टर के पीछे दौड़े। श्रीनिवासन ने वल्लि अम्माल से कहा ये ले। इस चिट को लेकर सीधे चली जाओ। सीढ़ियों के ऊपर कुर्सी पर बैठे सज्जन को देना । बच्ची को लेटी रहने दो। वल्लि अम्माल चिट लेकर सीधे चली गई। कुसीं खाली पड़ी थी। थोड़ी देर बाद सज्जन अपने भांजे को भर्ती करा कर लौटे। सब को लाइन लगाने को कहा। आधे घंटे के बाद वल्लि अम्माल से कहा- इस पर डॉक्टर का दस्तखत नहीं है। दस्तखत करवा कर लाओ। फिर वेतन आदि के बारे में पूछकर चिट देकर कहा इसे लेकर सीधे जाकर बाएँ मुड़ना। तीर का निशान बना होगा। 48 नंबर कमरे में जाना। वल्लि अम्माल को कुछ समझ में नहीं आया। इधर-उधर घूमकर एक कमरे के पास पहुँची। वहाँ के एक आदमी ने चिट ले ली। कुछ देर बाद पाप्पाति का नाम पढ़कर कहा इसे यहाँ क्यों लाई ? कल सवेरे साढ़े सात बजे आना। वल्लि अम्माल भागी चक्कर काटकर सीढ़ी के पास पहुँची। बगल का दरवाजा बंद था। इसी में उसकी बेटी स्ट्रेचर पर पड़ी दिखाई दी। पास वाले आदमी से गिड़गिड़ा कर बोली दरवाजा खोलिए । मेरी बेटी अंदर है। उसने कहा सब बंद हो चुका है, तीन बजे आना। इसी बीच एक आदमी ने कुछ पैसे देकर दरवाजा खुलवाया। वल्लि अम्माल भीतर दौड़ी गई और पाप्पाति को कलेजे से लगाए बाहर आई। फिर बेंच पर बैठकर खूब रोई। फिर सोचा इसे मामूली बुखार ही तो है। वापस चलती हूँ। वैद्य जी को दिखा दूँगी। माथे पर खड़िया मिट्टी का लेप कर दूँगी और अगर पाप्पाति ठीक हो गई तो वैदीश्वरण जी के मंदिर जाकर भगवान को भेंट चढाऊँगी।
प्रश्न 1:- लेखक ने कहानी का शीर्षक नगर क्यों रखा ? शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट करें।
उत्तर – प्रस्तुत कहानी में नगरीय व्यवस्था का चित्रण किया गया है। एक रोगी जो ईलाज के लिए गाँव से नगर आता है किन्तु अस्पताल प्रशासन उसका टोलमटोल कर देता है। उसकी भर्ती नहीं हो पाती है। नगरीय व्यवस्था से क्षुब्ध होकर ही इस कहानी का शीर्षक ‘ नगर’ रखा गया है। वर्तमान परिस्थिति में नगरीय जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। अस्पताल के डॉक्टर, कर्मचारी आदि खाना पूर्ति कर अपने जिम्मेदारी से मुक्त हो जाते हैं। अनपढ़ गंवार वल्लि अम्माल नाम की एक विधवा अपनी पुत्री के इलाज के लिए नगर के एक बड़े अस्पताल में आती है। अस्पताल के वरीय चिकित्सक उस रोगी को भर्ती करने का आदेश देते हैं। किन्तु कर्मचारीगण अनदेखी कर देते हैं। वल्लि अम्माल इधर-उधर चक्कर काटती है कि उसकी बेटी का इलाज सही तरीके से हो जाये। कर्मचारियों द्वारा सुबह 7:30 बजे आने की बात पर वल्लि अम्माल अपनी बेटी को लेकर अस्पताल से निकल जाती फुर्सत मिलने पर वरीय चिकित्सक मेनिनजाइटिस से पीड़ित रोगी को भर्ती होने की बात पूछते हैं । अस्पताल प्रशासन को इसकी कोई खबर नहीं होने पर वरीय चिकित्सक क्रोधित होकर उस रोगी को खोजने की बात कहते हैं। कर्मचारी एवं डॉक्टर उस रोगी की खोज में लग जाते हैं। वस्तुतः इस कहानी में अस्पताल प्रशासन की कमजोरियों एवं मानवीय मूल्यों में निरन्तर आने वाली गिरावटों का सजीवात्मक चित्रण किया हैं। नगर में रहने वाले लोग केवल अपने सुख- सुविधा में लगे रहते हैं।