1:- कहानी का सारांश प्रस्तुत करें।
उत्तर:- उड़ीसा के प्रमुख कथाकार सातकोड़ी होता द्वारा रचित ढहते विश्वास’ शीर्षक कहानी एक चर्चित कहानी है। इस कहानी में मानवीय मूल्यों का सफल अंकन किया गया है। वस्तुतः होता जी के कथा साहित्य में उड़ीसा के गहरी जीवन की आंतरिकता का उल्लेख मिलता है। उड़ीसा का जन-जीवन प्रायः बाढ़ और सूखा से प्रभावित रहता है। इस कहानी में बाढ़ से प्रभावित लोगों की जीवन-शैली के साथ- साथ एक माँ की वात्सल्यता का चित्रण मिलता है। इस कहानी की प्रमुख पात्र लक्ष्मी है। उसका पति कलकत्ता में नौकरी करता है। पति के पैसे से उसकी गृहस्थी नहीं चल पाती है इसलिए वह तहसीलदार साहेब के घर में काम कर अपना जीवन-यापन करती है। देवी नदी के तट पर बसा हुआ उसका गाँव बाढ़ से हमेशा प्रभावित हो जाता है। इस वर्ष उसे सूखा के साथ-साथ बाद का भी प्रकोप सहना पड़ता है। लगातार वर्षा होने के कारण नदी का बाँध टूट जाता है। बाढ़ की विकरालता जन-जीवन को निःशेष करने लगती है। लक्ष्मी अपनी संतान के साथ ऊँचे टीले की ओर दौड़ती है। देखते-देखते पानी उसके गर्दन तक पहुँच जाता है। किसी तरह वह बरगद के पेड़ पर आश्रय पाती है। उसका आत्म विश्वास ढहने लगता है। उसे लगता है कि मृत्यु अब समीप है। साड़ी के आधे भाग से वह अपने शरीर को बाँध लेती है। कुछ देर के बाद ही वह अचेत हो जाती है। चेतना आते ही वह अपने छोटे बेटे, को ढूँढने लगती है। टहनियों के बीच एक फंसे हुए बच्चे को उठा लेती है। मृत-अर्धमृत बच्चा उसका नहीं है फिर भी वह उसे अपने स्तन से लगा लेती है। उस समय लक्ष्मी के मन में केवल ममत्व था । वस्तुतः इस कहानी के द्वारा लेखक मानवीय मूल्यों को उद्घाटित किया है।
2:- कहानी में आये बाद के दृश्यों का चित्रण अपने शब्दों में प्रस्तुत करें।
उत्तर – बाद शब्द सुनते ही मन-मस्तिष्क में तरह-तरह के प्रश्न उठने लगते हैं। त्रासदी का ऐसा तांडव जो जीव-जगत को तबाह कर दे। उड़ीसा जैसा प्रदेश प्रायः बाढ सूखा से त्रस्त रहता है। प्रस्तुत कहानी में आये हुए बाढ़ का चित्रण बड़ा ही त्रासदीपूर्ण है। देवी नदी के किनारे स्थित लक्ष्मी का गाँव प्रायः बाढ़ की चपेट में आ जाता है। लगातार वर्षा होने से लक्ष्मी को अन्दर से झकझोर देता है। मनुष्य की आवाज उसके शब्द, आनन्द, कोलाहल सब रेत में दफन हो गये हैं। दलेई बाँध टूटने से नदी का पानी सर्वत्र फैल गया है। चारों तरफ चीत्कार सुनाई पड़ती है लक्ष्मी के मन में अच्छे-बुरे ख्याल आने लगते हैं। पति की अनुपस्थिति उसे खटकने लगती है। लोग ऊँची जगहों पर शरण पाने के लिए बेतहाशा दौड़ पड़ते हैं लक्ष्मी अपने बेटे की प्रतीक्षा में बिछड़ जाती है। किसी तरह अपने बच्चों को लेकर वह दौड़ पड़ती है। धारा में उसके पैर उखड़ जाते हैं। बरगद की जंटा पकड़कर किसी तरह पेड़ पर चढ़ जाती है। देखते-देखते बरगद का पेड़ भी डूबने लगता है। लक्ष्मी अपनी साड़ी के आधे-भाग से कमर को बाँध लेती है। वह कुछ ही समय में अचेत हो जाती है। टीने पर चढ़े हुए लोग अपने परिचितों को ढूँढ रहे थे। कोई किसी की सहायता नहीं कर सकता था। लाश की तरह एक जगह टिकी हुई लक्ष्मी को सहसा होश आ जाता है। वह अपने छोटे बेटे को ढूँढने लगती है। हिम्मत हार चुकी वह अनायास पेड़ की शाखा प्रशाखा की जोड़ में फंसे एक छोटे बच्चे को उठा लेती है।वह उसका बेटा नहीं है। उसका शरीर फुला हुआ है। फिर भी वह उस नन्हें से बच्चे को अपने स्तन से सटा लेती है
3:- कहानी के शीर्षक की सार्थकता पर विचार करें।
उत्तर – रचना-भाव का मुख्य द्वार शीर्षक होता है। शीर्षक रचना की रुजा एवं व्यापकता को परिलक्षित करता है। शीर्षक का चयन रचनाकार मुख्यतः घटना, पत्र, घटना-स्थल, उद्देश्य एवं मुख्य आलोच्य कहानी का शीर्षक इस कहानी के मुख्य चरित्र से जुड़ा हुआ है। पूरी कहानी पर लक्ष्मी का व्यक्तित्व और कृतित्व छाया छितराया हुआ है। मेहनत करनेवाली लक्ष्मी पति से दूर रहकर भी अपना भरण-पोषण कर लेती हो पति द्वारा भेजे गये राशि से उसका घर-खर्च नहीं चलता है अतः वह तहसीलदार साहब के घर में काम कर अपने बेटा-बेटी का पालन- पोषण करती है देवी नदी के किनारे स्थित उसका घर पानी के प्रकोप का हिस्सा है। कभी बाढ़ तो कभी सूखाइ से त्रस्त वह मातृत्व का अक्षरशः पालन करती हैं। शायद पुनः बाढ़ का प्रकोप न हो जाये। वह नदी में दुआ माँगती है। किन्तु नदी की निष्ठुरता अपने आगोश में ले लेती है। टीले पर जाने की होड़ में वह सबकुछ खो देती है। बगरद के पेड़ पर आश्रय तो पा लेती है। किन्तु उसका छोटा बेटा प्रवाह में बह जाता है।
4:- लक्ष्मी के व्यक्तित्व पर विचार करें।
उत्तर – लक्ष्मी प्रस्तुत कहानी की प्रधान, नायिका है। वह इस कहानी का केन्द्रीय चरित्र है। एक नारी का जो स्वरूप होता है वह इस कहानी में देखने को मिलता है। जीवनरूपी रथ का एक चक्र होनेवाली पत्नी की भंगिमा का लक्ष्मी प्रतिनिधित्व करती है। पति के बाहर रहने पर भी वह घर गृहस्थी का बोझ अपने सिर पर होती है। पति द्वारा प्राप्त राशि से जब घर का खर्च नहीं चलता है तब वह तहसीलदार साहब के यहाँ काम कर खर्च जुटाती है। पहले सूखा और फिर बाढ़ के भय से लक्ष्मी सशंकित हो उठती है। उसका आत्मविश्वास डगमगाने लगता है। विधि के विधान को कौन टाल सकता है। लक्ष्मी को जिस बात का भय था वह उसके सामने आ जाता है।
5:- बिहार का जन-जीवन भी बाढ़ और सूखा से प्रभावित होता रहा है। इस संबंध में आप क्या सोचते हैं ? लिखें ।
उत्तर:- बिहार की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि यहाँ बाद और सूखा का प्रकोप होना ही है। उत्तरी बिहार एवं दक्षिणी बिहार की कुछ ऐसी नदियाँ है जो हमेशा बरसात में तूफानी रूप ले लेती है। दक्षिण बिहार में बहनेवाली नदियों का जलस्तर कम वर्षा होने पर भी जल्दी ही बढ़ जाता है। ये नदियाँ हिमालय पर्वत से निकलकर मैदानी भाग में कहर ढा देती है । नेपाल से सटे होने एवं राजनीतिक गतिविधियों के कारण उन क्षेत्रों में बाढ़ का प्रायः प्रकोप होता है। हर वर्ष बिहार का कुछ क्षेत्र बाढ़ से बहुत प्रभावित होता है। जानमाल की अपार क्षति होती है। पिछले वर्ष कोशी के ताडव ने अपना एक अलग इतिहास लिख दिया है। कितने गाँव बह गये। बाद समाप्त हुआ कि महामारी फैल गयी ।