दही वाली मंगम्मा कहानी:-
यह कहानी मंगम्मा की है जोकि अलूर गांव के वैंकेटपुर की रहने वाली थी। वह बैंगलोर के बाड़ी में जाकर दही बेचती थी। उस गांव में एक मांजी थी जिससे वह घुल मिल गई थी। अच्छी तरीके से एक दिन मंगम्मा दही बेचने गई तो आवाज लगाई कि मांजी दही ले लो। मां जी किसी काम में बिजी थी, तभी उनका बेटा आकर दही ले लेता है तो मंगम्मा बोलती है कि जाकर मांजी को जल्दी भेजो। मुझे कुछ काम है तो मांजी आती है। तो मंगम्मा बोलती है कि मांजी आपका बेटा तो समझदार है। कुछ बातें करती है मांजी से मंगम्मा। उसके बाद जब मंगम्मा के पास टाइम रहता है तो उसके पास पान सुपारी खाती है और अपना दुख सुख बात करती है। फिर उसके बाद अपने घर चली जाती है।
जब 15 दिन बाद मंगम्मा जो है दही बेचने आती है तो उदास थी। तभी मांजी बोली कि क्यों रे मंगम्मा क्या बात है, आज बड़ा उदास है क्या बेटा पत्तों से झगड़ा हुआ है। मांजी बोली की हां हां। मंगम्मा बोलती है कि हां मांजी आज बेटे पतोह से झगड़ा हो गया है। मेरी बहू जो है ना कि आप पोते को पीट रही थी तो मैं ने बोल दिया कि क्यों रे राक्षसी। इतने छोटे बच्चे को मार के मुआ देगी क्या?उसी पर बहू ने मुझसे लड़ गई और यह बात हमने अपना बेटा से भी कहा। तब बेटा भी बहू के ही साथ दिया। तब मांजी क्या हुआ कि दही लेकर वह बोली कि देखो मंगम्मा टेंशन मत लो। जाने दो। जो हुआ सो हुआ। अच्छा से जाओ घर पर मिलजुलकर रहा हो तो अगले दिन फिर मंगम्मा आती है। दही लेकर तो उदास थी और उदास थी। उसके बाद मंगम्मा क्या होता है ना कि एक दो दिन बाद वह अलग खाना बनाकर खाने लगती है, रहने लगती है। उसके बाद एक दिन और जाती है तो मां जी से बोलती है मंगम्मा कि मांजी जो आप ब्लाउज पहने है मखमल का वह कितने रुपये का है। तो मांजी बोलती है कि सात ₹8 का है लगभग मंगम्मा जो है नए ब्लाउज साड़ी पहनकर फिर दही बेचने जाती है। जिसे गांव के लोग भी बोलते हैं कि देखो अब मंगम्मा जो है अपने बेटे पोतों से अलग होकर नए नए कपड़े पहन रही है। जब शाम को घर पर लौटती है मंगम्मा तो उसकी बहू टोन मारती है कि देखो बुढ़िया को कि बुराड़ी में कितना चमका रही है नये नये कपड़ा उसी पर फिर पतोह से और बेटे में हो जाता है। बेटे से बोलती है मंगम्मा कि क्यों मैं तेरे बहू को नहीं दी हूं गहना गुड़िया। इतने में ही नजमा जो है। उसकी बहू गहना गुड़िया लेकर बुढ़िया को ऊपर फेंक देती है कि ये ले अपना सारा गहना कुछ दिन बाद जो है। मंगम्मा आती है दही बेचने और मांजी से बोलती है कि मांजी आप बहुत अच्छी हैं। मेरे पास कुछ पैसे हैं आप इसे बैंक में रखवा दीजिएगा। मां जी बोली की क्या बात है? तो मंगम्मा बोलती है कि मां जी आज हम आ रहे थे गांव से तो उम्म अमराई के कुँआ जो है उसी के पास मेरे गांव का एक जुगाड़ी है जिसका नाम है रंगप्पा। वह मेरा हाथ पकड़ लिया था।
वह बोलने लगा कि मंगम्मा आजकल तुम तो खूब सज धज के आ रही है कि मुझको तुम कुछ कर दोगे। तो मैं उससे हाथ छुड़ाकर बोला कि मैं अपने घरवाले से पूछूँगा तो दूंगी। आगे जो है सो कानपुर से मंगवा। जो कुछ मिठाई लेकर आ रही थी तभी कौवा जो है उसका स्पर्श कर लेता है। तो मंगम्मा बोलती है कि हे भगवान, पता नहीं क्या होगा। अफसोस कि क्योंकि लोग कुछ लोग कहते हैं कि कौवा का स्पर्श हो जाता है तो दिन खराब हो जाता है। जब मंगला जो है घर आई तो पोता उसके घर पर आ गया था अपने मां बाप को छोड़कर। पोता बोल रहा था कि मां दादी मैं आपके ही पास रहूँगा। मैं अपने मां बाप के पास नहीं जाऊंगा। तो मंगम्मा बहुत खुश थी कि चलो कम से कम यह बीते भर का छोरा तो मुझे पहचान रहा है। मेरा जवान बेटा बहू मुझे नहीं पहचाना। लेकिन यह पोता मुझे तो पहचान रहा है ना। अगले दिन सिर पर दही और गोद में बच्चा ले जा। बड़ा कठिन था। तीन मील तक तीन मील की दूरी पर मंगम्मा को जो है दही और बचा कर ले जाना कठिन था। इसलिए मंगम्मा जो है काम करती है कि उसके मां के पास जाकर उस बच्चा को छोड़ देता है। फिर। कुछ दिन बाद जो है बेटा और बहू आकर मां को समझाता है कि मांजी मुझसे उस दिन गलती हो गया, मुझे माफ कर दो। फिर मंगम्मा नहीं समझती है तो गांव के भी बड़े बुजुर्ग लोग आकर समझाते हैं, जिसे मंगम्मा समझ जाती है और उसकी बहू बोलती है कि मांजी, आज से आप घर में ही रहना, खाना बनाना, खाना, दही बेचने का काम मैं करूंगी। तो एक दिन क्या होता है।
मंगम्मा बोलती है कि चलो मैं तुम्हें दही बेचने की जगह दिखा देता हूं। तो सास बहू और गोद में बच्चा और सिर पर दही का टोकरा लेकर बाड़ी में पहुंच जाती है और मां जी से मंगम्मा बोलती है कि मां जी यह मेरी बहू है। अब यही कल से आएगी दही बेचने। इसका नाम नजमा है। मां भी बोली। अगले दिन जब बहू दही लेकर आती है गांव में तो माजी बोलती है कि क्यों रे? नजमा तू तो बड़ी समझदार है पर सास को घर से निकाल देना कौन सी समझदारी का काम है? तो नजमा बोली कि माजी! सास होने का मतलब यह नहीं है कि जो चाहे आप वह करें। मेरा भी कुछ हक बनता है मैं भी अब जिस तरीके से वह बच्चे का जन्म दिए हैं, उस पर हक जताना चाहते हैं तो मेरा भी तो बच्चा है। मैं भी तो उसको भला बुरा कर लिए नहीं डांट दूंगा। अगर ऐसा मैं नहीं कर पाऊं तो मैं कैसी बहू हूं? जब जब मुझे माजी। जब मुझे पता चला कि रंगप्पा द्वारा की रंगप्पा के कर्ज देने के लिए माजी तैयार हो गए हैं तो तब मैं अपने बेटे को सिखा कर माजी के पास अपने पोते को उसके दादी के पास भेज दिया। मेरा बेटा भी राजी हो गया और। हम उसके पास भेज दिए और मिलजुलकर उसके साथ रहने लगे। यह बात सच है कि यह दुनिया का होड़ लगा हुआ है कि जब सास बहू में लड़ाई झगड़ा का यह तो सिलसिला जारी ही रहता है। जब शादी होता है तो बेटे पर से हक मां नहीं हटाना चाहती है और बहू जो है अब अपने पति पर हक जमाना चाहती है। इसी बात को लेकर आज समाज में घर घर में यह होड़ लगा हुआ है।